Wednesday 23 July 2014

झील पे डोलती इक नाव भला क्या चाहे?



झील पे डोलती इक नाव भला क्या चाहे?

आज तुम साथ चले संग मेरे लहरों पे
हाथ में हाथ लिए साथ साथ बैठे हो
अभी शुरू है किया एक सफर दोनों ने
के जिस पे दूर तलक, दूर तलक जाना है
अभी उमंग भरे ख्वाब आँख में होंगे
फकत सुनहरी जिंदगी ये नजर आएगी
बहुत हसीन लगेगा ये नया अफ़साना
लबों पे वस्ल की धुन खुद ही उतर आएगी
दुआ है मेरी मुहब्बत उमर-दराज बने

झील पे डोलती इक नाव भला क्या चाहे?

मगर सुनो कि मेरे पास और भी कुछ है
जो आज मैं कहना भी चाहूँ तो कह नहीं सकती
मगर जो सलवटें मेरी सतह पे दिखती हैं
उनमें जाते हुए ये बात मेरी पढ़ जाना
कि जिस सफर पे कदम चंद अभी रक्खे हैं
ये आगे चल के हमेशा हसीनो-नाजुक हो
ये हो तो सकता है, अक्सर मगर नहीं होता !

मुश्किलें लाख तरीकों से सर उठाएंगी
उनकी आँखों में आँख दे जवाब दे देना
उस घडी हाथ में फिर हाथ अपने ले लेना,
जेहन में बारहा शक की लकीरें उभरेंगी
प्यार का लम्स मगर उनको मिटा देता है,
ज़ल्द ही वक़्त चला जाएगा बेफिक्री का
और बच्चों, बड़ों की, रोज़गार-दुनिया की
हर किसम की  दुश्वारियां आ बैठेंगी,
उनको आना है, मगर उनकी खैरकदमी में
एक दूजे को कहीं भूल नहीं जाना तुम

बहुत दिन बाद अगर हो सके तो फिर एक बार
अपने बच्चों को लिए लौट के जब आओगे 
(अभी आहिस्ता से लेकर चली हूँ मैं तुमको
बहुत धीरे से डोलती हूँ झील में इस पल)
देखना किस तरह पानी को छपछपाते हुए
मैं उस रोज़ कैसे झील में इतराउंगी
एक दफा, एक दफा बस और यहां आना तुम
देखना किस तरह मस्ती में झूम जाउंगी

झील पे डोलती इक नाव भला क्या चाहे?

Wednesday 16 July 2014

टूटे रिश्ते

टूटे रिश्ते, आँख मिला कर हंस लेंगे पर,
हाथ पकड़, फिर साथ चलें, कब हो पाता है


पगले मनुआ, राह पुरानी, बात पुरानी,
खुद को नाहक बहलाता है, फुसलाता है


यादों की बारिश में भीगे, दिल तो चाहे,
वक़्त का सर पे दूर तलक फैला छाता है


मन बैरी है, बात ना माने, ज़िद पकड़े है,
बंद पड़ी गलियों में क्यूँ आता जाता है