अब दर्द से, तक़लीफ़ से रिश्ता नहीं कोई
अच्छा भला लगे न पर खलता नहीं कोई
अब ऐसी मुलाक़ात का किस्सा बयान क्या
दीखता तो रोज़ है मगर मिलता नहीं कोई
रातों में भी चराग़ जब जलता नहीं कोई
या तो मेरे रुमाल की तासीर ख़ुश्क है
आँखों से या तो अश्क़ ही ढलता नहीं कोई
तारी है बेहिसाब गुल दिल की राह में
चुपचाप दबे पांव अब चलता नहीं कोई
दरया के पास रह के भी साहिल में प्यास है
बहने की होड़ में यहाँ रुकता नहीं कोई
दरया के पास रह के भी साहिल में प्यास है
ReplyDeleteबहने की होड़ में यहाँ रुकता नहीं कोई.......kamaal hai ji, wah !!!!!!!!!!!!
मिलो तो सही
ReplyDeleteया तो मेरे रुमाल की तासीर ख़ुश्क है
ReplyDeleteआँखों से या तो अश्क़ ही ढलता नहीं कोई
... Beautiful !!
बहुत ही उम्दा
ReplyDeletebahane ki hod mai yahan rukta koi nhi...
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ReplyDelete♥
या तो मेरे रुमाल की तासीर ख़ुश्क है
आंखों से या तो अश्क़ ही ढलता नहीं कोई
अरे वाह ! बिल्कुल नई बात कही है आपने …
प्रिय पुष्पेन्द्र वीर साहिल जी
सस्नेहाभिवादन !
बहुत अच्छी रचना है
आपकी और भी नई-पुरानी रचनाएं पढ़ कर प्रसन्नता हुई…
*महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Raaton mein chirag bhi ab jalta nahin.. you make words glow with meaning
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