Friday, 7 June 2013

चंद अशआर



चंद अशआर



कितना भटकोगे यूँ ही मेरे दिल के सहरा में
कब तलक रोक कर आँखों में मैं नमी रक्खूं

बस के तुम उँगलियाँ मेरी तरफ उठा रक्खो
किसी तरह भी हो पर खुद में वो कमी रक्खूं


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उम्र भर मौजों को इसने है पुकारा
अब उन्हें ये याद आना चाहता है

खुश्की-ए -दामन सहेगा कब तलक ?
अब ये साहिल डूब जाना चाहता है


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तमाशा देखने का अरमां था
तमाशा बन के रह गये यारों

लाख होठों में सलवटें डाली
फिर भी ये बात कह गये यारों