Thursday 27 September 2012

वो क़दम जो मंजिल के मुन्तज़िर रहे बरसों

वो क़दम जो मंजिल  के मुन्तज़िर रहे बरसों
वो क़दम जो रस्तों  को नापते रहे बरसों

जिनके साथ राहों का ऐसा दोस्ताना था
देर तक गुजरना था, दूर तलक जाना था

रास्तों की छाती पर दस्तकों सी आवाजें
या कहो कि क़दमों की थके-पाँव परवाज़ें

एक दिन हमेशा ही मंजिलों तक जाती हैं
देर से सही मंजिल उनको मिल ही जाती हैं

हर क़दम सिकंदर है, हर क़दम की हस्ती है
जश्ने-ताजपोशी में देर हो तो सकती है

Monday 24 September 2012

ये दिल्ली की साँसों में अटकी सी यमुना


ये दिल्ली की साँसों में अटकी सी यमुना
ये गंदला सा पानी, ये जहरीली यमुना
ये सूखे कनारों में छिपती सी यमुना
... ... ... ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

ये यमुना जो महलों को छू के थी बहती
जहां शामो-सुबहा थी चिड़ियाँ चहकती
जहां गायें  वंशी की धुन पे थिरकती
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

ये यमुना जो खुद में समेटे है गीता
अजानों में घुल के जहां वक़्त बीता
सबद-वाणियों  ने जहां दिल को जीता
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

हिमालय की बेटी, ये गंगा की बहना
ये यमुना जो ताजो-तखत का थी गहना
सुनो आज कुछ चाहती है ये कहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

किनारों पे मेरे मकानों का उगना
मेरे बहते पानी में सीवर का मिलना
मेरा बह के रुकना औ' रुक-रुक के बहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

कोई तो बढे, कोई तो आगे आये
कोई इस शहर, इस नदी को बचाए
कोई इस रुकी धार को फिर बहाए
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

Sunday 23 September 2012

बेचैन हसरतों का हर सांस पे दखल है


रूह में खला है, एहसास में खलल है
बेचैन हसरतों का हर सांस पे दखल है

जीने की राह तन्हा, मरने की राह वीरां
चौरास्तों पे फिर क्यूँ इतनी चहल-पहल है

पल में उदासियाँ हैं, पल में है शादमानी
दुनिया है क्या ये रंजो-ग़म की अदल-बदल है

ता-उम्र आशना दिल होने से रोका हमने
कर दो मुआफ़ दो-एक लम्हों की ये चुहल है