इब्तिदा करूँ कैसे |
तुमसे ये कहूं कैसे |
बात तुमसे करने को |
बेकरार रहता है, |
सुबहो-शाम इस दिल को |
किस क़दर तुम्हारा ही |
इंतज़ार रहता है, |
इंतज़ार के लम्हे |
बेकली के आलम में |
इस तरह मचलते हैं, |
जिस तरह मचल कर के |
साहिलों के शानों पे |
रोशनी की किरनों के |
सांसो-दम बिखरते हैं, |
ख्वाहिशों के रेले हैं |
जुस्तजू के मेले हैं |
बेवजह झमेले हैं, |
दिल में कुछ वीरानी हैं |
क्या अजब कहानी है |
तुमको जो सुनानी है, |
बात क्या है, क्या मालूम |
मालूमात करनी है |
लाख मुश्किलें हो पर, |
कुछ तो बात करनी है, |
जो भी कह सकूं जानां |
बात वो ही कहनी है, |
बात जो भी कहनी है |
उस का कुछ नहीं हासिल |
बात सुन सको जो तुम |
उस की बात करनी है, |
बस यही तो है मुश्किल |
बात वो करूँ कैसे |
तुमसे ये कहूं कैसे |
इब्तिदा करूँ कैसे? |
बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की, दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है, यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी, मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है - पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Monday, 6 April 2015
इब्तिदा करूँ कैसे
Sunday, 15 February 2015
अब सफ़र होता नहीं
अब सफ़र होता नहीं, थक चुके मेरे क़दम
आ नहीं सकता मेरी उम्मीद करना छोड़ दे
आ नहीं सकता मेरी उम्मीद करना छोड़ दे
खुद को मैं झूठी तसल्ली दे चुका हूँ इस कदर
कम से कम तू तो मेरे दिल को मनाना छोड़ दे
कम से कम तू तो मेरे दिल को मनाना छोड़ दे
क्या फरक़ हो जाएगा गर मैं तुझे मिल जाऊँगा
इस बुझी शम्मा सहारे राह चलना छोड़ दे
इस बुझी शम्मा सहारे राह चलना छोड़ दे
जो बची दिखती है गहरी स्याह बाकी ज़िंदगी
रात ही होगी, सुबह की बात करना छोड़ दे
रात ही होगी, सुबह की बात करना छोड़ दे
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