Monday, 6 April 2015

इब्तिदा करूँ कैसे

इब्तिदा करूँ कैसे
तुमसे ये कहूं कैसे
बात तुमसे करने को 
बेकरार रहता है,
सुबहो-शाम इस दिल को 
किस क़दर तुम्हारा ही
इंतज़ार रहता है,
 
 
इंतज़ार के लम्हे
बेकली के आलम में
इस तरह मचलते हैं,
जिस तरह मचल कर के
साहिलों के शानों पे
रोशनी की किरनों के
सांसो-दम बिखरते हैं,
 
ख्वाहिशों के रेले हैं 
जुस्तजू के मेले हैं
बेवजह झमेले हैं,
दिल में कुछ वीरानी हैं
क्या अजब कहानी है
तुमको जो सुनानी है,
बात क्या है, क्या मालूम
मालूमात करनी है
लाख मुश्किलें हो पर,
कुछ तो बात करनी है,
जो भी कह सकूं जानां
बात वो ही कहनी है,
बात जो भी कहनी है
उस का कुछ नहीं हासिल
बात सुन सको जो तुम
उस की बात करनी है,
बस यही तो है मुश्किल 
बात वो करूँ कैसे 
तुमसे ये कहूं कैसे
इब्तिदा करूँ कैसे?