एक फिसलन भरा एहसास लौट आता है
मेरे हाथों से छूटते तुम्हारे हाथों का
एक हल्की सी सिहरन भी याद आती है
या वहम था मेरी उँगलियों के पोरों का?
बहुत दूर तक दिल ने पलट-पलट देखा
नज़र में भाप बन नमी जो उमड़ आयी थी!
कोई ख़ामोश मगर तल्ख़ सा सवाल लिए
निगाह एकटक ठहरी सी नज़र आयी थी.
बड़ा अज़ब सा है सवाल, मगर है तो सही
जाने क्या तुमने मुझे खोके पा लिया होगा?
ज़रा पुरानी गठरियाँ टटोल कर देखो
छिपा के मुझसे क्या खुद को बचा लिया होगा?
जाने क्या हो छिपा, धीरे से गाँठ सुलझाना
महज ख़याल नहीं, याद का ख़जाना है.
जैसे हो रेशमी एहसास इसे छूने का
बड़ा महीन ये लफ़्ज़ों का ताना-बाना है.