Wednesday, 31 August 2011

गुजर गए कि कोई मोड़ रहगुजर में नहीं ..




गुजर गए कि कोई मोड़ रहगुजर में नहीं
मज़ा इसीलिए शायद कोई सफ़र में नहीं

रात भर जेह्न में आतिशफशां दहकता रहा
बूँद भर दाग़ रोशनी का पर सहर में नहीं

बचपना खो गया है नस्ले-नौ का, देखता हूँ
कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा, मिला शहर में नहीं

दुआएं मांगने में जो सुकून था, उतना
जाने क्यूँ चैन उन दुआओं के असर में नहीं

Thursday, 25 August 2011

शबनमी सी रात के आसार हैं, मत रो अभी


कुछ देर रुक जा

चंद लम्हों में बिखर जाएगी महफ़िल
लोग अपनी राह लेंगें
सिर्फ़ थोड़ी देर की है बात बाक़ी, 
मान कहना

रात भर जब ओस की बूंदें उतर कर
सुबह के सूरज की लाली को समेटे
फैल जायेंगीं जमीं पे, जिस तरह 
अनगिनत भीगी हुई आँखों का मंज़र 

क्यूँ भला ये आँख नम है,
क्यूँ नज़र से झांकते हैं लाल डोरे?
फिर नहीं पूछेगा कोई, देखना 
रात भर रोये हो क्या !

अलविदा अश्कों को कहने की घड़ी आने को है
उस घड़ी ना तुम अकेले 
और ना कोई साथ होगा 
जी भर सिसकना ...........

शबनमी सी रात के आसार हैं, मत रो अभी