Wednesday, 31 August 2011

गुजर गए कि कोई मोड़ रहगुजर में नहीं ..




गुजर गए कि कोई मोड़ रहगुजर में नहीं
मज़ा इसीलिए शायद कोई सफ़र में नहीं

रात भर जेह्न में आतिशफशां दहकता रहा
बूँद भर दाग़ रोशनी का पर सहर में नहीं

बचपना खो गया है नस्ले-नौ का, देखता हूँ
कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा, मिला शहर में नहीं

दुआएं मांगने में जो सुकून था, उतना
जाने क्यूँ चैन उन दुआओं के असर में नहीं

5 comments:

  1. बहुत सुंदर ....
    हर शेर का गहरा अर्थ है..........

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  2. दुआएं मांगने में जो सुकून था, उतना
    जाने क्यूँ चैन उन दुआओं के असर में ना था....
    behut khoob...

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  3. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

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