गुजर गए कि कोई मोड़ रहगुजर में नहीं
मज़ा इसीलिए शायद कोई सफ़र में नहीं
रात भर जेह्न में आतिशफशां दहकता रहा
बूँद भर दाग़ रोशनी का पर सहर में नहीं
बचपना खो गया है नस्ले-नौ का, देखता हूँ
कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा, मिला शहर में नहीं
दुआएं मांगने में जो सुकून था, उतना
जाने क्यूँ चैन उन दुआओं के असर में नहीं
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteहर शेर का गहरा अर्थ है..........
गहन अभिव्यक्ति..........
ReplyDeleteदुआएं मांगने में जो सुकून था, उतना
ReplyDeleteजाने क्यूँ चैन उन दुआओं के असर में ना था....
behut khoob...
Aap sabhi ka dhanyavad..!
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-