बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की,
दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है,
यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी,
मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Sunday, 18 November 2012
कमी इज़हार में मुझसे कहीं रही होगी
कमी इज़हार में मुझसे कहीं रही होगी
मिरे जो नाम उसने एक भी तो रात न की
ग़म जुदा होने का होता, अफ़सोस न था
ग़म यही है कि उसने तो मुलाक़ात न की
तमाम रात दिवाली के दिए जलते रहे
तमाम रात अंधेरों ने मुझ से बात न की
तमाम रात दिवाली के दिए जलते रहे
ReplyDeleteतमाम रात अंधेरों ने मुझ से बात न की
बधाई ...कम से कम एक दिन तो अँधेरे खामोश रहे ....:))
तमाम रात दिवाली के दिए जलते रहे
ReplyDeleteतमाम रात अंधेरों ने मुझ से बात न की
बधाई ...कम से कम एक दिन तो अँधेरे खामोश रहे ....:))
जी हाँ, शांति रही :)
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