बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की, दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है, यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी, मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है - पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ...।
मन बैरी है, बात ना माने, ज़िद पकड़े है,बंद पड़ी गलियों में क्यूँ आता जाता है .............. बहुत खूब !!!
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ...।
ReplyDeleteमन बैरी है, बात ना माने, ज़िद पकड़े है,
ReplyDeleteबंद पड़ी गलियों में क्यूँ आता जाता है
.............. बहुत खूब !!!