Saturday, 21 April 2012

जंगल रिश्तों में पनप रहा है

जंगलों में घुसपैठ कर बना लिए खेत
और बस गए गाँव
मगर धीरे-धीरे

खेतों में फ़ैल रहा है शहर
शहरों में उग आये हैं कंक्रीट के कैक्टस
बड़ी तेजी से

मौका मिला तो 
फिर से पैर पसार रहा है -
जंगल रिश्तों  में पनप रहा है
चुपचाप

एक चक्र पूरा हुआ ...

2 comments:

  1. very apt pushpendraji, chakra to pura hua aur insaan mar gaya, apney boye jangal mein.. beautiful words

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  2. जंगल रिश्तों में पनप रहा है
    ......यही आज का सच है !

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