Saturday, 21 July 2012

मुहब्बत कौन सी शय है, नहीं आसान बतलाना

मुहब्बत कौन सी शय है, नहीं आसान बतलाना

अगर ये आग है तो आग ये ऐसे भड़कती है
कि इसमें इश्क के शोले नयी उम्मीद ले ले कर
बदन की रेत पे आतिश की मानिंद खेल करते हैं

अग़र ये ओस है तो आरजुओं की चिताओं पर
ये बरसाती है खुद को राहतों की ठंडी बूंदों में

अगर ये धूप है तो दिल की दुनिया के अंधेरों में
ये चाहत के चिरागों को उजाला बाँट देती है

अगर ये रास्ता है तो जमाने भर के ठुकराए
मुसाफिर इस पे चल के मंजिलों की थाह लेते हैं,
सफ़र की दास्तानें गुनगुनाती हैं कई सदियाँ 

अगर ये गीत है कोई तो इसके लफ्ज़ इतरा  कर
लबों से लब की दूरी इस तरह से पार करते हैं
कि जैसे धडकनों को बोल पहले से ही जाहिर थे

बड़ा मुश्किल है बतलाना, मुहब्बत कौन सी शय है!

10 comments:

  1. वाह बहुत ही खूबसूरत पंक्तियां पुष्पेंद्र जी । आनंदम आनंदम

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  2. मोहब्बत ज़िंदगी की सबसे मुश्किल आजमाइश है,
    मगर यह आजमा लेने के काबिल आजमाइश है.

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  3. वाह ... लाजवाब ... मज़ा आ गया इस गीत में ... भावमय ... धाराप्रवाह ... गेयता लिए ...

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  4. बहुत सुंदर !

    अगर कोई कर रहा हो मोहब्बत
    तो आसान है बतलाना
    पर करने वाले को फिर कहाँ
    है कुछ नजर आना
    ना है किसी को फिर उसने
    आकर है कुछ बताना !!

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  5. बहुत खूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ...!
    इबादत जिसके दिल में हो...उसी की होती मोहब्बत..,
    जो पत्थर को भी पिघला दे...एक ऐसी शय है मोहब्बत..!
    ~सादर !!!

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  6. सच बड़ा ही मुश्किल है इसको बता पाना ...... अच्छी रचना !

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