Friday, 19 April 2013

कुछ न कुछ तो कम या ज्यादा कहा गया



मिलना  हुआ  ज़रूर,  मुलाक़ात ना हुई 

उस शाम जैसी गहरी  कोई रात ना हुई 


 कुछ न कुछ तो कम या ज्यादा कहा गया 

 कुछ  बात  थी  कि बात जैसी बात ना हुई 

Wednesday, 17 April 2013

जाने क्यों वो पानी सूख गया ...



कभी झील किनारे
अपनी आँखों की सीपी में
मैंने जो बूँद रखी थी
वो मोती नहीं बन पायी

जाने क्यों वो पानी सूख गया ...

और मोती जो ठहरा है इन आँखों में
उसमें कोई नमी नहीं बाकी