मिलना हुआ ज़रूर, मुलाक़ात ना हुई
उस शाम जैसी गहरी कोई रात ना हुई
कुछ न कुछ तो कम या ज्यादा कहा गया
कुछ बात थी कि बात जैसी बात ना हुई
बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की, दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है, यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी, मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है - पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)