बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की,
दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है,
यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी,
मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Wednesday, 17 April 2013
जाने क्यों वो पानी सूख गया ...
कभी झील किनारे अपनी आँखों की सीपी में मैंने जो बूँद रखी थी वो मोती नहीं बन पायी
जाने क्यों वो पानी सूख गया ...
और मोती जो ठहरा है इन आँखों में उसमें कोई नमी नहीं बाकी
बहुत खूब ।
ReplyDeletebahut khoob ....!!
ReplyDeleteक्या बात है जी ... बहुत खूब ...
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