बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की,
दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है,
यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी,
मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Tuesday, 2 July 2013
तुम्हें जो भी गिला था, याद होगा
तुम्हारे साथ इक खामोश साया कदम कुछ तो चला था, याद होगा
मुझे कुछ भी न कहना, याद है पर तुम्हें जो भी गिला था, याद होगा
सच है, आखिर गिला क्या था?
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeletebhaut hi acchi........
ReplyDeleteमुझे कुछ भी न कहना, याद है पर
ReplyDeleteतुम्हें जो भी गिला था, याद होगा
तुमने भी बढ़कर न था रोका मुझे
सिला बेवफाई का तुम्हें भी याद होगा ...:))
सराहने के लिए आप सभी का धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteकल 18/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
latest post कानून और दंड
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसच ही तो है तनहाइयों का दामन जब थाम लिया तो अब कैसा ,कैसा शिकवा.सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसच ही तो है तनहाइयों का दामन जब थाम लिया तो अब कैसागिला और ,कैसा शिकवा.सुन्दर अभिव्यक्ति.
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