जो पराया था उसे अपना बना के देखता
वक़्त मिलता और तो क्या-क्या बना के देखता
यूँ तो आँखों ने नज़ारे कम नहीं देखे मगर
इक दफ़ा उसकी निगाहों में समा के देखता
ये भी मुमकिन था के वो एक बार फिर दिल तोड़ता
फिर भी चाहत थी उसे दिल में बसा के देखता
जिसने कल दो-चार क़दमों तक निभाया था सफ़र
आज उसके साथ इक रस्ता बना के देखता
चार बूँदें भी अगर दामन में जो होती मेरे
बैठ कर साहिल पे मैं दरया बना के देखता
वक़्त मिलता और तो क्या-क्या बना के देखता
यूँ तो आँखों ने नज़ारे कम नहीं देखे मगर
इक दफ़ा उसकी निगाहों में समा के देखता
ये भी मुमकिन था के वो एक बार फिर दिल तोड़ता
फिर भी चाहत थी उसे दिल में बसा के देखता
जिसने कल दो-चार क़दमों तक निभाया था सफ़र
आज उसके साथ इक रस्ता बना के देखता
चार बूँदें भी अगर दामन में जो होती मेरे
बैठ कर साहिल पे मैं दरया बना के देखता
Mahallah... Bahut sunder...
ReplyDeletebahut sunder likhte hai aap
ReplyDeleteman se nikle shabd bhavna me dube....waah
lajwaab. behad mn ko chhoone wali lines likhi hai. nice post
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 3दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteउम्दा अशआर
ReplyDeleteये भी मुमकिन था कि वो एक बार फिर दिल तोड़ता
ReplyDeleteफिर भी चाहत थी उसे दिल में बसा के देखता......
वाह!!!!
लाजवाब रचना....
धन्यवाद
Deleteबहुत ख़ूब !
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