Tuesday, 4 November 2014

जो पराया था उसे अपना बना के देखता



जो पराया था उसे अपना बना के देखता
वक़्त मिलता और तो क्या-क्या बना के देखता


यूँ तो आँखों ने नज़ारे कम नहीं देखे मगर
इक दफ़ा उसकी निगाहों में समा के देखता


ये भी मुमकिन था के वो एक बार फिर दिल तोड़ता
फिर भी चाहत थी उसे दिल में बसा के देखता


जिसने कल दो-चार क़दमों तक निभाया था सफ़र
आज उसके साथ इक रस्ता बना के देखता


चार बूँदें भी अगर दामन में जो होती मेरे
बैठ कर साहिल पे मैं दरया बना के देखता

11 comments:

  1. bahut sunder likhte hai aap
    man se nikle shabd bhavna me dube....waah

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  2. lajwaab. behad mn ko chhoone wali lines likhi hai. nice post

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 3दिसंबर2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. ये भी मुमकिन था कि वो एक बार फिर दिल तोड़ता
    फिर भी चाहत थी उसे दिल में बसा के देखता......
    वाह!!!!
    लाजवाब रचना....

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