आजकल बेवास्ता मिलता है वो कुछ इस तरह
ज्यों मेरी गुजरी हुई उलझन में वो शामिल न था
रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था
आख़री दम था नजर के सामने चेहरा तेरा
आशना होगा मेरा, ग़र तू मेरा क़ातिल न था
रूठ कर वापस समन्दर के चले जाने के बाद
बारिशों को इस कदर, तरसा कोई साहिल न था