Saturday, 24 September 2011

ज्यों मेरी गुजरी हुई उलझन में वो शामिल न था



आजकल बेवास्ता मिलता है वो कुछ इस तरह
ज्यों मेरी गुजरी हुई उलझन में वो शामिल न था 


रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास 
मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था

आख़री  दम  था  नजर  के  सामने  चेहरा  तेरा 
आशना होगा  मेरा, ग़र  तू  मेरा  क़ातिल  न था 

रूठ कर  वापस  समन्दर के  चले जाने के बाद 
बारिशों को इस कदर, तरसा कोई साहिल न था

10 comments:

  1. वाह वाह बहुत बहुत सुन्दर हर शेर ..बढ़िया

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  2. संवेदना से भरी मार्मिक... बेहद खूबसूरत गज़ल..

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  3. wah..rythem bhi hai..aur bhav bhi bahut ache hain,
    रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
    मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था

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  4. रूठ कर वापस समन्दर के चले जाने के बाद
    बारिशों को, इस कदर तरसा कोई साहिल न था
    .........बहुत खूब !

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  5. बहुत सुन्दर और गहरे भावों वाली ग़ज़ल

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  6. आख़री दम था नजर के सामने चेहरा तेरा
    आशना होगा मेरा, ग़र तू मेरा क़ातिल न था .....very very beautiful !!

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  7. hum to lajawab ho gaye aapki gazal padh kar, comment kya de.n!!!!!!!!!!

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  8. रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
    मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था


    क्या बात है जनाब ! बहुत प्यारा शे'र कहा है…

    आदरणीय पुष्पेन्द्र वीर साहिल जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    पहली बार पहुंचा हूं आपके यहां
    बहुत मुकम्मल और पुख़्ता कलाम है आपका । आपकी पुरानी कई पोस्ट्स खंगाली …
    ग़ज़लें भी पसंद आईं , नज़्में भी
    एक गीत भी ध्यान में आया

    अच्छा लगा आ'कर यहां …

    नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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