आजकल बेवास्ता मिलता है वो कुछ इस तरह
ज्यों मेरी गुजरी हुई उलझन में वो शामिल न था
रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
रेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था
आख़री दम था नजर के सामने चेहरा तेरा
आशना होगा मेरा, ग़र तू मेरा क़ातिल न था
रूठ कर वापस समन्दर के चले जाने के बाद
बारिशों को इस कदर, तरसा कोई साहिल न था
वाह वाह बहुत बहुत सुन्दर हर शेर ..बढ़िया
ReplyDeleteसंवेदना से भरी मार्मिक... बेहद खूबसूरत गज़ल..
ReplyDeletewah..rythem bhi hai..aur bhav bhi bahut ache hain,
ReplyDeleteरेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था
रूठ कर वापस समन्दर के चले जाने के बाद
ReplyDeleteबारिशों को, इस कदर तरसा कोई साहिल न था
.........बहुत खूब !
बहुत सुन्दर और गहरे भावों वाली ग़ज़ल
ReplyDeleteआप सभी का आभार !!
ReplyDeleteआख़री दम था नजर के सामने चेहरा तेरा
ReplyDeleteआशना होगा मेरा, ग़र तू मेरा क़ातिल न था .....very very beautiful !!
hum to lajawab ho gaye aapki gazal padh kar, comment kya de.n!!!!!!!!!!
ReplyDeleteThanks Meeta and Ranjana!
ReplyDelete♥
ReplyDeleteरेशमी लफ़्ज़ों से बुन दी उसने ख्वाबों की कपास
मुझको क्या मालूम इन ख़्वाबों से कुछ हासिल न था
क्या बात है जनाब ! बहुत प्यारा शे'र कहा है…
आदरणीय पुष्पेन्द्र वीर साहिल जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
पहली बार पहुंचा हूं आपके यहां
बहुत मुकम्मल और पुख़्ता कलाम है आपका । आपकी पुरानी कई पोस्ट्स खंगाली …
ग़ज़लें भी पसंद आईं , नज़्में भी
एक गीत भी ध्यान में आया
अच्छा लगा आ'कर यहां …
नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार