Sunday, 12 February 2012

यहाँ तुमको मिलूँ मैं या फ़क़त मेरे निशां बाक़ी !


अगर तय कर ही बैठे हो
  किसी अब और के दिल में 
    तुम्हें जा कर के रहना है,
नहीं अब एक भी लम्हा 
  मेरे दामन के साए में
    बिता सकते यहाँ जानां,

तो लो जाओ, अगर जा कर
  सुकूं लगता है पा लोगे
    मुहब्बत तर्क कर हम से !
मगर हर मोड़ पे पत्थर
  सड़क के, तुमसे पूछेंगे
    किसे तुम छोड़ आये हो ?

कभी रुमाल का कोना 
  जो है भीगा हुआ अब तक
    मेरे अश्कों के धारे से
      तुम्हारे हाथ आया तो 
        तुम्हें हंसने नहीं देगा !

किसी ढलती हुई शब में
  कोई बीता हुआ मंज़र
    कि जिसमें साथ होंगें हम
      तुम्हें रोने नहीं देगा !

सुबह तक जागते रहना
  कोई देखा हुआ सपना
    कि जिसमें बारहा तुमने
      मेरा चेहरा निहारा था 
        तुम्हें सोने नहीं देगा !

भले ही फाड़ दोगे तुम
  जला कर राख़ कर दोगे
    मगर वो हर्फ़ चीखेंगें 
      जो मैंने ख़त में लिक्खे थे !

शहर के कूचा-ओ-गलियाँ
  तुम्हें पहचान ही लेंगें 
    मेरे बारे में पूछेंगें 
      बड़ी उलझन में रख देंगें 
        बड़े सीधे सवालों से !

कहाँ जा पाओगे ऐसे ?
  किधर का रास्ता लोगे ?
    इधर ही लौट कर तुमको
      चले आना पड़ेगा पर
        यहाँ तुमको मिलूँ मैं या
          फ़क़त मेरे निशां बाक़ी ........

26 comments:

  1. rulaate hein nishaan jaane waale ke
    bulaate hein usko waapas isi bahaane se

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  2. यहाँ तुमको मिलूँ मैं या
    फ़क़त मेरे निशाँ बाक़ी.......bahut khub!!!!!

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  3. बेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  4. कभी रुमाल का कोना
    जो है भीगा हुआ अब तक
    मेरे अश्कों के धारे से
    तुम्हारे हाथ आया तो
    तुम्हें हंसने नहीं देगा !

    खूबसूरती से लिखे एहसास .... सुंदर नज़्म

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  5. इधर ही लौट कर तुमको
    चले आना पड़ेगा .....waah....

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  6. पहली बार आपके ब्लाॅग पर आयी और पहली ही कविता ने बाँध कर रख लिया। बेहद खूबसूरत

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  7. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, दिल से निकली इस रचना में मन को छू लिया.बहुत ही गहरे समेट रखे हैं, वाह !!!!!!!!!!!

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  8. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया, दिल से निकली इस रचना में मन को छू लिया.बहुत ही गहरे समेट रखे हैं, वाह !!!!!!!!!!!

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  9. कमाल है ....आज हम भी पहली बार आपके ब्लॉग पर आये...और बंध गए आपकी कविता से...
    आज से फोलो करती हूँ सो अब नियमित पाठक हूँ...

    बेहद सुन्दर रचना !!!!

    शुभकामनाये..

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  10. कहाँ जा पाओगे ऐसे ?
    किधर का रास्ता लोगे ?
    इधर ही लौट कर तुमको
    चले आना पड़ेगा पर
    यहाँ तुमको मिलूँ मैं या
    फ़क़त मेरे निशां बाक़ी ........सुन्दर रचना.....

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  11. सुलगते लफ़्ज़ , जलती आह
    सभी कुछ कह गए लेकिन
    हर इक ने बस यही समझा
    फ़क़त ये नज़्म हो जैसे ...

    कथ्य और शिल्प
    दोनों , बहुत ही प्रभावशाली ... !!

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  12. स्नेह - समर्पण एक टशन के साथ .... बहुत खूब !

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