अगर तय कर ही बैठे हो
किसी अब और के दिल में
तुम्हें जा कर के रहना है,
नहीं अब एक भी लम्हा
मेरे दामन के साए में
बिता सकते यहाँ जानां,
तो लो जाओ, अगर जा कर
सुकूं लगता है पा लोगे
मुहब्बत तर्क कर हम से !
मगर हर मोड़ पे पत्थर
सड़क के, तुमसे पूछेंगे
किसे तुम छोड़ आये हो ?
कभी रुमाल का कोना
जो है भीगा हुआ अब तक
मेरे अश्कों के धारे से
तुम्हारे हाथ आया तो
तुम्हें हंसने नहीं देगा !
किसी ढलती हुई शब में
कोई बीता हुआ मंज़र
कि जिसमें साथ होंगें हम
तुम्हें रोने नहीं देगा !
सुबह तक जागते रहना
कोई देखा हुआ सपना
कि जिसमें बारहा तुमने
मेरा चेहरा निहारा था
तुम्हें सोने नहीं देगा !
भले ही फाड़ दोगे तुम
जला कर राख़ कर दोगे
मगर वो हर्फ़ चीखेंगें
जो मैंने ख़त में लिक्खे थे !
शहर के कूचा-ओ-गलियाँ
तुम्हें पहचान ही लेंगें
मेरे बारे में पूछेंगें
बड़ी उलझन में रख देंगें
बड़े सीधे सवालों से !
कहाँ जा पाओगे ऐसे ?
किधर का रास्ता लोगे ?
इधर ही लौट कर तुमको
चले आना पड़ेगा पर
यहाँ तुमको मिलूँ मैं या
फ़क़त मेरे निशां बाक़ी ........
rulaate hein nishaan jaane waale ke
ReplyDeletebulaate hein usko waapas isi bahaane se
Thanks Rajendra ji
DeleteHeart touching !!
ReplyDeleteThanks Meeta
Deletehridayasparshi,sunder rachna
ReplyDeleteThanks Reena ji
Deleteयहाँ तुमको मिलूँ मैं या
ReplyDeleteफ़क़त मेरे निशाँ बाक़ी.......bahut khub!!!!!
बेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
Dhanyavad Neeraj Ji
Deleteरोचक!
ReplyDeleteआपका धन्यवाद .
Deleteकभी रुमाल का कोना
ReplyDeleteजो है भीगा हुआ अब तक
मेरे अश्कों के धारे से
तुम्हारे हाथ आया तो
तुम्हें हंसने नहीं देगा !
खूबसूरती से लिखे एहसास .... सुंदर नज़्म
इधर ही लौट कर तुमको
ReplyDeleteचले आना पड़ेगा .....waah....
आपका धन्यवाद .
Deleteपहली बार आपके ब्लाॅग पर आयी और पहली ही कविता ने बाँध कर रख लिया। बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteआपका धन्यवाद .
Deleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया, दिल से निकली इस रचना में मन को छू लिया.बहुत ही गहरे समेट रखे हैं, वाह !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteआपका धन्यवाद .
Deleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आया, दिल से निकली इस रचना में मन को छू लिया.बहुत ही गहरे समेट रखे हैं, वाह !!!!!!!!!!!
ReplyDeleteकमाल है ....आज हम भी पहली बार आपके ब्लॉग पर आये...और बंध गए आपकी कविता से...
ReplyDeleteआज से फोलो करती हूँ सो अब नियमित पाठक हूँ...
बेहद सुन्दर रचना !!!!
शुभकामनाये..
sundar rachna
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteकहाँ जा पाओगे ऐसे ?
ReplyDeleteकिधर का रास्ता लोगे ?
इधर ही लौट कर तुमको
चले आना पड़ेगा पर
यहाँ तुमको मिलूँ मैं या
फ़क़त मेरे निशां बाक़ी ........सुन्दर रचना.....
धन्यवाद
Deleteसुलगते लफ़्ज़ , जलती आह
ReplyDeleteसभी कुछ कह गए लेकिन
हर इक ने बस यही समझा
फ़क़त ये नज़्म हो जैसे ...
कथ्य और शिल्प
दोनों , बहुत ही प्रभावशाली ... !!
स्नेह - समर्पण एक टशन के साथ .... बहुत खूब !
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