आसमां के दामन पे
मोतियों की शक्लों में
जितने भी सितारे थे
एक-एक कर मैंने
सबके-सब उतारे थे
और बंद हाथों को
घर के एक कोने में
(जो मुझे डराता था,
रात के अंधेरों में)
पहरेदार रक्खा था
ये पुरानी बातें हैं
जब मैं छोटा बच्चा था
घर का कोई भी कोना
रात के अँधेरे में
अब डरा नहीं सकता
क्या हुआ मुझे लेकिन
अपने नन्हे बच्चे की
मासूम एक ख़्वाहिश पे
तारे ला नहीं सकता
अक्ल के अंधेरों ने
मुझको ऐसे जकड़ा है
चाह कर भी अब मेरा
आसमान के तारों तक
हाथ जा नहीं सकता
तुम तो हो बड़े, पापा
क्यूँ ये कर नहीं सकते ?
गोल-गोल आँखें कर
उसने मुझसे पूछा है
साथ उम्र बढ़ने के
होश के असर में यूँ
आदमी क्यूँ अपने ही
दायरों में जीता है -
ये बता नहीं सकता
ये बता नहीं सकता
मोतियों की शक्लों में
जितने भी सितारे थे
एक-एक कर मैंने
सबके-सब उतारे थे
और बंद हाथों को
घर के एक कोने में
(जो मुझे डराता था,
रात के अंधेरों में)
पहरेदार रक्खा था
ये पुरानी बातें हैं
जब मैं छोटा बच्चा था
घर का कोई भी कोना
रात के अँधेरे में
अब डरा नहीं सकता
क्या हुआ मुझे लेकिन
अपने नन्हे बच्चे की
मासूम एक ख़्वाहिश पे
तारे ला नहीं सकता
अक्ल के अंधेरों ने
मुझको ऐसे जकड़ा है
चाह कर भी अब मेरा
आसमान के तारों तक
हाथ जा नहीं सकता
तुम तो हो बड़े, पापा
क्यूँ ये कर नहीं सकते ?
गोल-गोल आँखें कर
उसने मुझसे पूछा है
साथ उम्र बढ़ने के
होश के असर में यूँ
आदमी क्यूँ अपने ही
दायरों में जीता है -
ये बता नहीं सकता
ये बता नहीं सकता
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी भावाव्यक्ति...
Thanks Vidya ji
Deleteइस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
Thanks Neeraj ji
Deleteबहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,खुबशुरत सुंदर रचना के लिए बधाई .
ReplyDeleteNEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
धन्यवाद !
Deleteहोश के असर में यूँ
ReplyDeleteआदमी क्यूँ अपने ही
दायरों में जीता है
ये बता नहीं सकता !
very sweet, soft and thoughtful poem.....
धन्यवाद !
ReplyDeletebachapan sabko hi bhata hai,,adorable poem..
ReplyDeleteBahut bahut khoobsoorat rachna !!
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