Monday, 5 March 2012

कुछ रस्ते से भटके लम्हे


कुछ रस्ते से भटके लम्हे
रातों के स्याह अंधेरों के 
गहरे सन्नाटों में आकर
कांधे पे सर रख देते हैं,
और बिलख-बिलख के रोते हैं।

उन लम्हों में होते हैं
कुछ भूले-बिसरे से साथी
कबसे बंद झरोखों से
जिनकी आवाजें आती हैं।

छत पर छुप कर बैठे-बैठे
यादें खुद से उकताती हैं
तब ठंडी आहों पर चढ़ के 
फिर से मिलने आ जाती हैं 
और दिल की आग बुझाती हैं।

रोते-रोते जब ये यादें
बच्चों की तरह सो जाती हैं
कुछ जवां उमर के बीते दिन
आँखों से आँख मिलाते  हैं,
कुछ बीते जख्मों की तड़पन
कुछ टूटे रिश्तों की किरचन
कुछ मुस्कानों की टीस लिए
दिल में रहने आ जाते  हैं।

कुछ रस्ते से भटके लम्हे
रातों के स्याह अंधेरों के 
गहरे सन्नाटों में आकर
कांधे पे सर रख देते हैं,
और बिलख-बिलख के रोते हैं ...

6 comments:

  1. आप को होली की खूब सारी शुभकामनाये :)

    नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है पधारियेगा



    स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी

    razrsoi.blogspot.com

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  2. छत पर छुप कर बैठे-बैठे
    यादें खुद से उकताती हैं
    तब ठंडी आहों पर चढ़ के
    फिर से मिलने आ जाती हैं
    और दिल की आग बुझाती हैं।

    very touching poem..:)

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  3. समय की ओट से निकले अपोसे ही पल जिन्दा रखते हैं इंसान को ... अच्छी रचना है ...

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