ये दिल्ली की साँसों में अटकी सी यमुना
ये गंदला सा पानी, ये जहरीली यमुना
ये सूखे कनारों में छिपती सी यमुना
... ... ... ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
ये यमुना जो महलों को छू के थी बहती
जहां शामो-सुबहा थी चिड़ियाँ चहकती
जहां गायें वंशी की धुन पे थिरकती
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
ये यमुना जो खुद में समेटे है गीता
अजानों में घुल के जहां वक़्त बीता
सबद-वाणियों ने जहां दिल को जीता
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
हिमालय की बेटी, ये गंगा की बहना
ये यमुना जो ताजो-तखत का थी गहना
सुनो आज कुछ चाहती है ये कहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
किनारों पे मेरे मकानों का उगना
मेरे बहते पानी में सीवर का मिलना
मेरा बह के रुकना औ' रुक-रुक के बहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
कोई तो बढे, कोई तो आगे आये
कोई इस शहर, इस नदी को बचाए
कोई इस रुकी धार को फिर बहाए
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
यमुना नदी के आज के सही हालात का खाका खींच दिया है ....
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteRecent Post…..नकाब
पर आपका स्वगत है
धन्यवाद संगीता जी एवं संजय जी !
ReplyDeleteबेहतरीन उम्दा रचना बहुत ही बढ़िया लख-लख बधाइयाँ
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .
सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी !
Deletebahut khub
ReplyDeleteये यमुना जो खुद में समेटे है गीता
ReplyDeleteअजानों में घुल के जहां वक़्त बीता
सबद-वाणियों ने जहां दिल को जीता
ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
बहुत बढ़िया विषय और आपकी प्रस्तुति
Thanks Reena ji, vandana ji & pankaj ji!
ReplyDelete"ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है" ...गीत की तर्ज़ पर यमुना के यथार्थ का चित्रण. बहुत सटीक और प्रभावी.
ReplyDeleteजी शिखा जी, आपने तर्ज एकदम सही पकड़ी :). धन्यवाद.
ReplyDeleteकिनारों पे मेरे मकानों का उगना
ReplyDeleteमेरे बहते पानी में सीवर का मिलना
मेरा बह के रुकना औ' रुक-रुक के बहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
achchhi rachna puspendra ji
nadiyon ka dard samete huye |
आज नदियों की दुर्दशा का बहुत सजीव चित्रण...
ReplyDeleteअपनी नदियों के लिये यह एहसास केवल कवियों में क्यों जागता है. एक नही एक संस्कृति को पोसती है, जिसकी कितनी शोक-गाथायें हमारे सामने हैं .
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