रूह में खला है, एहसास में खलल है
बेचैन हसरतों का हर सांस पे दखल है
जीने की राह तन्हा, मरने की राह वीरां
चौरास्तों पे फिर क्यूँ इतनी चहल-पहल है
पल में उदासियाँ हैं, पल में है शादमानी
दुनिया है क्या ये रंजो-ग़म की अदल-बदल है
ता-उम्र आशना दिल होने से रोका हमने
कर दो मुआफ़ दो-एक लम्हों की ये चुहल है
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबचते बचाते दिल इश्क लम्हों से होकर ही गुजरा !
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल !
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeletesunder jazbat,sunder gazal
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