वो क़दम जो मंजिल के मुन्तज़िर रहे बरसों
वो क़दम जो रस्तों को नापते रहे बरसों
जिनके साथ राहों का ऐसा दोस्ताना था
देर तक गुजरना था, दूर तलक जाना था
रास्तों की छाती पर दस्तकों सी आवाजें
या कहो कि क़दमों की थके-पाँव परवाज़ें
एक दिन हमेशा ही मंजिलों तक जाती हैं
देर से सही मंजिल उनको मिल ही जाती हैं
हर क़दम सिकंदर है, हर क़दम की हस्ती है
जश्ने-ताजपोशी में देर हो तो सकती है
हर क़दम विजेता है, हर क़दम की हस्ती है
ReplyDeleteजश्ने-ताजपोशी में देर हो तो सकती है........
very inspiring !!!!!!!!!!!!
Wah!!! Behtareen...Bahut khoob:-)
ReplyDeletekya khoob likha hai Pushpendra ji ...Waqt achha zaroor ata hai, Par aksar, waqt par nahi ata...! :))
ReplyDeleteThank you Mamta ji.
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