Monday, 10 October 2011

खुले-आम हो रही है, इशारों की बात है!


अंधों से गुफ्तगू है, नज़ारों की बात है 
खुले-आम हो रही है, इशारों की बात है!

छोटा सा मुद्दआ भी हल हो नहीं है पाता
फिर भूख-प्यास प्यारे, हजारों की बात है!

दुल्हन का ज़िक्र कैसा, नीलाम पे है डोली 
इस मुल्क में फ़क़त उन, कहारों की बात है! 

दरिया सिमट के जिनकी तामीर हो रही है
बस्ती की हद पे छाते, किनारों की बात है!

हम सर झुका दें जाके सज़दे में, ऐसी कोई 
रूहें यहाँ नहीं बस, मज़ारों की बात है!


अब क्या कहें कि बातें, कुछ बोलती नहीं हैं
ख़ामोशियों से सुनना, पुकारों की बात है !

6 comments:

  1. छोटा सा मुद्दआ भी हल हो नहीं है पाता
    फिर भूख-प्यास प्यारे, हजारों की बात है!.....Hard hitting and painful .

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  2. अब क्या कहें कि बातें, कुछ बोलती नहीं हैं
    ख़ामोशियों से सुनना, पुकारों की बात है !
    ...... बेहद उम्दा और बोलते शब्द !

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  3. pukaron ki baten khamoshiyon se sun.na....ajab rule hai shayar ki duniya ka aur behad khubsurat bhi....god bless you for writing such a beautiful poem.

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  4. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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