Monday, 24 October 2011

दीवाली मुबारक़ !!







ख़्वाब ग़म के धुंए में गुमशुदा हैं सारे
बेबसी में तमाम आरजुएं खो भी चुकी
अज़ब तारीकियों का चार सिम्त आलम है
थकी हुई थीं, बुझकर शमाएँ सो भी चुकी

कान में भूख सांय-सांय शोर करती है
आँख में जागती नींदों का धुआं सो भी चुका
सुलग रही है आंत फुलझड़ी की मानिंद
आतिशबाजियों का खेल वहां हो भी चुका

उस गली क्यों दीवाली हो के नहीं जाती है
अँधेरा जिस गली सुबहा पे आके छा भी चुका
किसी ख़ुशी की शक्ल, एक रोशनी की किरण
आये, ऐसी उम्मीदों का दिया बुझा भी चुका

छोड़ो! मुश्किल सवाल है, ज़वाब क्यूँ ढूंढें?
अपने बच्चों के लिए हम पटाखे ला भी चुके
रंगोली भर चुकी हैं घर की औरतें, अब तो
हरेक मुंडेर पे घर की दिए जला भी चुके

दीवाली मुबारक़ !!










4 comments:

  1. प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.

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  2. शब्द नहीं हैं मेरे पास इस कविता के लिए .... दिल को भेदता हुआ सच . धन्यवाद !!

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  3. दीपावली की मंगल कामनाएं........

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