Sunday, 20 November 2011

ओ भटकने वाले ठहर जा



ये सफ़र न होगा कभी ख़तम, न इसकी कोई शुरुआत है
ओ भटकने वाले ठहर जा, तेरे नाम ये हंसीं रात है


ये रवां-रवां सी ज़िन्दगी 
ये धुआं-धुआं सी रोशनी
ये कदम-कदम पे फ़ासले
ये दूर होते सिलसिले
मेरे पास आ, इन्हें भूल जा
मेरे गेसुओं में डूब जा
ये अदाएं घायल तेरे लिए
ये निगाहें पागल तेरे लिए
आ मुझे गले से लगा ले तू, ये प्यार की शुरुआत है


ये जाम सा छलका बदन
ये सर से पैरों तक जलन
ये उम्र की अंगड़ाइयां
ये जिस्म की परछाइयां
ये सुलगते दिल की करवटें
ये नज़र पे छाई सलवटें
ये दायरा मेरी बाँहों का
ये सिलसिला मेरी सांसों का
यही मान ले तेरे वास्ते मेरे इश्क़ की सौगात है

3 comments:

  1. ये सफ़र न होगा कभी ख़तम, न इसकी कोई शुरुआत है
    ओ भटकने वाले ठहर जा, तेरे नाम ये हंसीं रात है.very nice.

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  2. नीरज जी एवं निशा जी, आपका शुक्रिया !!

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