Thursday, 26 January 2012

एक सिपाही की लाश आयी है ....


एक माँ की जगी-जगी रातें
जिनको आराम हो चला था कुछ 
बेटा अब हो गया जवां उसका 
उम्र भर अब रहेंगी जागी ही


एक बहना के हाथ की राखी
चावलों में गुंथी हुई रोली 
बेवजह राह तकती हैं किसका 
उम्र भर इंतज़ार ही होगा

एक तस्वीर हाथ में थामे
कौन है जो खड़ी है खिड़की पे
आँख रोई सी, जुल्फ है वीरां 
अच्छा, इसका ही ब्याह होना था!

याद कर चौड़ी छाती बेटे की
पिता की आँख जो चमकती थीं 
बुझ गयीं हैं सदा सदा के लिए  
उनमें अब रोशनी नहीं होगी

पूछते क्यूँ हो तुम वजह इसकी 
तुमने शायद खबर नहीं देखी 
आज अखबार में जो छायी है
एक सिपाही की लाश आयी है.... 

ऐसी लाशों का नाम क्या लेना
तुमको उसके सगों से क्या लेना
चंद मेडल, मुआवजे, पेंशन 
इतना काफी है, और क्या देना

सियासती मसअला वो सीमा का 
इनके मरने से हल नहीं होता
मोहरे हैं, शहीद हो कर भी 
इनका चेहरा कोई नहीं होता

फिर भी क्यूँ आँख में खटकती है
पहले ही पेज पे जो आयी है
आज फिर से वही छपी है खबर
एक सिपाही की लाश आयी है ....

Tuesday, 24 January 2012

कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए







चंद चेहरों का याद रह जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए
बारहा ये सवाल उठ जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

मौसमों की तरह बदल जाना, दोस्तों ने कहाँ से सीखा है
दोस्तों के लिए बदल जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

मानता हूँ सिवाय तल्खी के, कुछ भी दिल में तेरे नहीं बाकी
तल्खियों की तरह जिए जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

हौसलों का करार है मुझसे, उम्र भर साथ मेरे रहने का
बदगुमां इस कदर रहे जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

आज फिर शाम से जली शम्मा, आज फिर रात भर सुलगना है
रात-भर इस तरह जले जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

Saturday, 7 January 2012

मुद्दतों रखती है घर से दूर रोज़ी की तलाश


रोकता था कोई आँचल और मुझे जाना पड़ा  
साथ बीता एक ही पल और मुझे जाना पड़ा 

इस कदर मुझको सफ़र ने टूट कर आवाज दी
हर तरफ बादल ही बादल और मुझे जाना पड़ा 

सर्द तन्हाई का मौसम, तंग मेरा पैरहन
बस तेरी यादों का कम्बल और मुझे जाना पड़ा

मुद्दतों रखती है घर से दूर रोज़ी की तलाश
लौट के आया ही था कल और मुझे जाना पड़ा 

दोस्ती में तंज़ पाकर भी नहीं भूला उसे
वो मुझे कहता था पागल  और मुझे जाना पड़ा 

Tuesday, 3 January 2012

क़ासिद कल से घूम रहा मन के गलियारे में


जब भी मैंने चाहा सोचूँ अपने बारे में

तेरा अक्स नज़र आया मन के गलियारे में 

चटका देगा कोई पत्थर, बाहर आते ही 
सपनों को रहने देना मन के गलियारे में 

शायद तूने फिर से कोई ख़त भेजा होगा
क़ासिद कल से घूम रहा मन के गलियारे में

चलते-चलते थक जाऊं तो सो भी जाता हूँ
घर जैसी ही ख़ामोशी मन के गलियारे में

एक ही सागर, एक ही मीना, एक ही साक़ी है 
एक ही महफ़िल सजती है मन के गलियारे में 

किसने शोर शहर में डाला, 'साहिल' है तनहा
यादों का हज्जूम चला मन के गलियारे में