Tuesday, 24 January 2012

कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए







चंद चेहरों का याद रह जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए
बारहा ये सवाल उठ जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

मौसमों की तरह बदल जाना, दोस्तों ने कहाँ से सीखा है
दोस्तों के लिए बदल जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

मानता हूँ सिवाय तल्खी के, कुछ भी दिल में तेरे नहीं बाकी
तल्खियों की तरह जिए जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

हौसलों का करार है मुझसे, उम्र भर साथ मेरे रहने का
बदगुमां इस कदर रहे जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

आज फिर शाम से जली शम्मा, आज फिर रात भर सुलगना है
रात-भर इस तरह जले जाना, कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए

5 comments:

  1. jisne bhee thamaa mohabbat kaa haath
    wo hee uskee aag mein jalaa

    badhiyaa

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  2. उम्र भर साथ मेरे रहने का, हौसलों का करार है मुझसे
    कितना लाज़िम हैं ज़िन्दगी के लिए, बदगुमां इस कदर रहे जाना

    बहुत खूब...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. धन्यवाद डॉ. राजेंद्र एवं नीरज जी.

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

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  5. बहुत खूब, लाजबाब !

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
    जय हिंद...वंदे मातरम्।

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