एक माँ की जगी-जगी रातें
जिनको आराम हो चला था कुछ
बेटा अब हो गया जवां उसका
उम्र भर अब रहेंगी जागी ही
एक बहना के हाथ की राखी
चावलों में गुंथी हुई रोली
बेवजह राह तकती हैं किसका
उम्र भर इंतज़ार ही होगा
एक तस्वीर हाथ में थामे
कौन है जो खड़ी है खिड़की पे
आँख रोई सी, जुल्फ है वीरां
अच्छा, इसका ही ब्याह होना था!
याद कर चौड़ी छाती बेटे की
पिता की आँख जो चमकती थीं
बुझ गयीं हैं सदा सदा के लिए
उनमें अब रोशनी नहीं होगी
पूछते क्यूँ हो तुम वजह इसकी
तुमने शायद खबर नहीं देखी
आज अखबार में जो छायी है
एक सिपाही की लाश आयी है....
ऐसी लाशों का नाम क्या लेना
तुमको उसके सगों से क्या लेना
चंद मेडल, मुआवजे, पेंशन
इतना काफी है, और क्या देना
सियासती मसअला वो सीमा का
इनके मरने से हल नहीं होता
मोहरे हैं, शहीद हो कर भी
इनका चेहरा कोई नहीं होता
फिर भी क्यूँ आँख में खटकती है
पहले ही पेज पे जो आयी है
आज फिर से वही छपी है खबर
एक सिपाही की लाश आयी है ....
behad marmik sach ko ukerti hui prstuti.
ReplyDeleteबहुत मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी और संगीता जी !
ReplyDeletebahut hee badhiyaa,
ReplyDeletesach hai desh ke liye jaan kurbaan karne waale sipahee ke liye sochnaa bhee achhaa kaam kiyaa hai aapne
मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeletebahut hi sundar sir ...kuch rachnaye dil ko chu jati hai aur apni jagha bana leti hai jahan me yah bhi unhi mese ek hai .....i hv no words
ReplyDeleteDr. Rajendra ji, Bhaskar ji aur Ashok ji, aapka aabhar !
ReplyDeleteआपकी रचना काबिल - ए- तारीफ है ....बहुत शिद्दत से आपने भावनाओं को शब्द दिए हैं ...!
ReplyDeleteDhanyavad Keval Ram ji.
ReplyDeletesach ko bayan karti Behtarin rachna
ReplyDeleteDhanyavad Gopal ji
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