Saturday, 7 January 2012

मुद्दतों रखती है घर से दूर रोज़ी की तलाश


रोकता था कोई आँचल और मुझे जाना पड़ा  
साथ बीता एक ही पल और मुझे जाना पड़ा 

इस कदर मुझको सफ़र ने टूट कर आवाज दी
हर तरफ बादल ही बादल और मुझे जाना पड़ा 

सर्द तन्हाई का मौसम, तंग मेरा पैरहन
बस तेरी यादों का कम्बल और मुझे जाना पड़ा

मुद्दतों रखती है घर से दूर रोज़ी की तलाश
लौट के आया ही था कल और मुझे जाना पड़ा 

दोस्ती में तंज़ पाकर भी नहीं भूला उसे
वो मुझे कहता था पागल  और मुझे जाना पड़ा 

10 comments:

  1. और मुझे जाना पडा.....

    bahut sundar.....

    www.poeticprakash.com

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  2. bahut accha hai sir. regards.

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  3. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

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  4. सर्द तन्हाई का मौसम, तंग मेरा पैरहन
    बस तेरी यादों का कम्बल और मुझे जाना पडा ...
    Bahut hi khoobsoorat !!

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  5. Beautifully expressed the pain of breaking away from a dear moment !
    Seema Rawat

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  6. bahut sundar ...aur mujhe jana pada

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  7. सर्द तन्हाई का मौसम, तंग मेरा पैरहन
    बस तेरी यादों का कम्बल और मुझे जाना पड़ा ...
    जावन है ये और जीवन में ऐसे अनेक पल होते हैं जिनपे अपना बस नहीं होता ...
    अच्छी गज़ल है ...

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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