Monday 24 September 2012

ये दिल्ली की साँसों में अटकी सी यमुना


ये दिल्ली की साँसों में अटकी सी यमुना
ये गंदला सा पानी, ये जहरीली यमुना
ये सूखे कनारों में छिपती सी यमुना
... ... ... ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

ये यमुना जो महलों को छू के थी बहती
जहां शामो-सुबहा थी चिड़ियाँ चहकती
जहां गायें  वंशी की धुन पे थिरकती
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

ये यमुना जो खुद में समेटे है गीता
अजानों में घुल के जहां वक़्त बीता
सबद-वाणियों  ने जहां दिल को जीता
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

हिमालय की बेटी, ये गंगा की बहना
ये यमुना जो ताजो-तखत का थी गहना
सुनो आज कुछ चाहती है ये कहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

किनारों पे मेरे मकानों का उगना
मेरे बहते पानी में सीवर का मिलना
मेरा बह के रुकना औ' रुक-रुक के बहना
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

कोई तो बढे, कोई तो आगे आये
कोई इस शहर, इस नदी को बचाए
कोई इस रुकी धार को फिर बहाए
... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

14 comments:

  1. यमुना नदी के आज के सही हालात का खाका खींच दिया है ....

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  2. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    Recent Post…..नकाब
    पर आपका स्वगत है

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  3. धन्यवाद संगीता जी एवं संजय जी !

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  4. बेहतरीन उम्दा रचना बहुत ही बढ़िया लख-लख बधाइयाँ

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  5. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .

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    1. सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद संगीता जी !

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  6. ये यमुना जो खुद में समेटे है गीता
    अजानों में घुल के जहां वक़्त बीता
    सबद-वाणियों ने जहां दिल को जीता
    ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन

    बहुत बढ़िया विषय और आपकी प्रस्तुति

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  7. "ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है" ...गीत की तर्ज़ पर यमुना के यथार्थ का चित्रण. बहुत सटीक और प्रभावी.

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  8. जी शिखा जी, आपने तर्ज एकदम सही पकड़ी :). धन्यवाद.

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  9. किनारों पे मेरे मकानों का उगना
    मेरे बहते पानी में सीवर का मिलना
    मेरा बह के रुकना औ' रुक-रुक के बहना
    ... ... ... ...ये यमुना कहीं खो ना जाये किसी दिन
    achchhi rachna puspendra ji
    nadiyon ka dard samete huye |

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  10. आज नदियों की दुर्दशा का बहुत सजीव चित्रण...

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  11. अपनी नदियों के लिये यह एहसास केवल कवियों में क्यों जागता है. एक नही एक संस्कृति को पोसती है, जिसकी कितनी शोक-गाथायें हमारे सामने हैं .

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