Sunday, 28 July 2013

आज रात हो न हो

क्या पता कि आरजू
दबे कि या उठे उबल
क्या पता कि दिल में फिर
जुस्तजू का खलल
आज रात हो न हो


क्या पता कि नींद में
फिर से ऐसे रास्ते
फिर दिखें या ना दिखें
और ऐसे रास्तों
पे वैसी ही आवारगी
जिसमें हमसे तुम मिले
जिसमें तुमसे हम मिले
नाजुको-हसीन से
हद तलक महीन से
सिलसिलों का काफिला
आज रात हो ना हो


क्या पता कि इस दफा
चल पड़े मचल पड़े
इधर पड़े उधर पड़े
बिखर पड़े ...
कदम जो सांस खेंच के
जाने कब कहाँ रुकें
क्या पता के ना रुकें
उनके नाम राह में
इक मुकाम राह में
आज रात हो ना हो


क्या पता कि नाम की
चिट्ठियाँ सलाम की
गर ना घर पे आ सकीं
मुझको गर ना पा सकीं
नामावर उदास हो
याकि तुम रहो दुखी
हम सफ़र पकड़ चुके
हम दुखी ना हम सुखी
ख़त बिलख उठें तो क्या
दिल सुलग उठें तो क्या
छींट छांट अश्क की
राख चुप करा सके
क्या पता, किसे पता
क्या सजा क्या खता
फैसले का फलसफा
फलसफे पे फैसला
आज रात हो ना हो
आज रात हो ना हो

मैं सोचता हूँ कि ऐसी कोई ग़ज़ल लिक्खूं

उम्र के आधे पडाव पे रुक कर
मैं सोचता हूँ कि ऐसी कोई ग़ज़ल लिक्खूं
कि जिसमें लहलहाती क्यारियों की रौनक हो
आने वाली नसल के लिए उम्मीदें हों
और ढलते हुए वजूद आसरा पाएं !


वरना बेशक ये डर सताता है
जल्द ही लफ्ज़ मानी खो देंगे
स्याहियां थक के सूख जायेंगी
कलम के हाथ कंपकंपायेंगे
कागजों को भी नींद आएगी
कौन किस्सा बयां करेगी जुबां


मेरे वजूद के होने से और ना होने से
कौन सी बात छूट जाएगी ?

Tuesday, 2 July 2013

तुम्हें जो भी गिला था, याद होगा





तुम्हारे साथ इक खामोश साया
कदम कुछ तो चला था, याद होगा

मुझे कुछ भी न कहना, याद है पर
तुम्हें जो भी गिला था, याद होगा


Friday, 7 June 2013

चंद अशआर



चंद अशआर



कितना भटकोगे यूँ ही मेरे दिल के सहरा में
कब तलक रोक कर आँखों में मैं नमी रक्खूं

बस के तुम उँगलियाँ मेरी तरफ उठा रक्खो
किसी तरह भी हो पर खुद में वो कमी रक्खूं


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उम्र भर मौजों को इसने है पुकारा
अब उन्हें ये याद आना चाहता है

खुश्की-ए -दामन सहेगा कब तलक ?
अब ये साहिल डूब जाना चाहता है


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तमाशा देखने का अरमां था
तमाशा बन के रह गये यारों

लाख होठों में सलवटें डाली
फिर भी ये बात कह गये यारों


Friday, 19 April 2013

कुछ न कुछ तो कम या ज्यादा कहा गया



मिलना  हुआ  ज़रूर,  मुलाक़ात ना हुई 

उस शाम जैसी गहरी  कोई रात ना हुई 


 कुछ न कुछ तो कम या ज्यादा कहा गया 

 कुछ  बात  थी  कि बात जैसी बात ना हुई 

Wednesday, 17 April 2013

जाने क्यों वो पानी सूख गया ...



कभी झील किनारे
अपनी आँखों की सीपी में
मैंने जो बूँद रखी थी
वो मोती नहीं बन पायी

जाने क्यों वो पानी सूख गया ...

और मोती जो ठहरा है इन आँखों में
उसमें कोई नमी नहीं बाकी

Saturday, 9 February 2013

जानना जरूरी है?






दोस्त जिसको कहता हूँ
जिसके साथ रहता हूँ
जिसके साथ इस दिल की
बातचीत रखता हूँ

कितनी दूर तक आये
कितना साथ दे पाए
दोस्ती निभा पाए
या दग़ा ही दे जाये

जान मैं नहीं सकता

मेरे हाथ में क्या है
उसके हाथ में क्या है
किसके हाथ में क्या है
छोड़िये ! रखा क्या है

ये पता लगाने में
खुद को आजमाने में
ख्वामख्वाह का किस्सा
है, इसे सुनाने में

जान मैं नहीं सकता

कौन, किस जगह, कितना?
वक़्त छान पायेगा
मेरे साथ बैठेगा
दास्तां सुनाएगा

जान मैं नहीं सकता

जानना जरूरी है?