ग़म की है शाम, शाम होने दे
इसका किस्सा तमाम होने दे
कल सुबह इक नयी सुबह होगी
शब का जो हो अंजाम होने दे
जाने कल रास्ते बदल जाएँ
कुछ क़दम ख़ुशख़िराम होने दे
अब नहीं पर्दा किसी भी शै से
होने दे, बात आम होने दे
जिन बदनामियों का कोई नहीं
सब की सब मेरे नाम होने दे
मुझको लिखने से चैन है बाकी
होने दे, गुम पयाम होने दे
(01.06.2011)
sweet and strong!!!!!
ReplyDeletelike it very much....
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeletehttp://sanjaybhaskar.blogspot.com/