मेरे चमन को फूंकती वो बिजलियाँ न रहीं
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मेरे दयार-ए-रोशन की दास्ताँ न रहीं
दिखा करती थीं अक्सर अब मगर यहाँ न रहीं
बड़ी हसीन सतरंगीं वो तितलियाँ न रहीं
दर्द पिघलने तलक ये चिराग़ जलते रहे
और उसके बाद ये आँखें धुंआ-धुंआ न रहीं
बस कि इक बार चश्मे-नम ने पलट के देखा
जो भी उससे शिकायतें थीं, दरमियाँ न रहीं
आज कुछ दोस्तों के साथ बोल-हंस आया
बहुत दिनों से थी दिल में, उदासियाँ न रहीं
फिर से एक बार तुम्हें आज छूना चाहता हूँ
तुम्हें जो जानती थीं पर वो उंगलियाँ न रहीं
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चश्मे-नम - भीगी आँख
(11.06.2011)
दर्द पिघलने तलक ये चिराग़ जलते रहे
ReplyDeleteऔर उसके बाद ये आँखें धुंआ-धुंआ न रहीं
बस कि इक बार चश्मे-नम ने पलट के देखा
जो भी उससे शिकायतें थीं, दरमियाँ न रहीं
फिर से एक बार तुम्हें आज छूना चाहता हूँ
तुम्हें जो जानती थीं पर वो उंगलियाँ न रहीं
bahut khuubsurat
धन्यवाद पारुल जी...
ReplyDeleteअद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
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