Monday, 6 June 2011

किसके हिस्से की नमी, पलकों पे अपनी तुम लिए


किसके हिस्से की नमी 
पलकों पे अपनी तुम लिए 
अजनबी इक राह पे 
जाते हो ऐसे रूठ कर 
जैसे नहीं आओगे अब 

क्या हो गया, कुछ तो कहो? 
जो चुभ गया भीतर तलक 
तकना भी तुमको अब इधर
गोया गवारा है नहीं !
मुखतलिफ़ से तौर हैं

क्या रंज है, तकलीफ़ है 
कुछ न कुछ बदला तो है 
गुमसुम हो, मुझ से दूर हो
बात तक करते नहीं
कुछ तो कहूं, गर तुम सुनो

गर है तो अपनी बस यही 
उम्मीद तुमसे मुख़्तसर 
जब कभी तुमको लगे
दिल परेशां बे-सबब 
याद करना, एक पल

क्या पता ऐसा भी हो
कि जिस दिए की आंच में
जल रहे हो तुम, वही
मुझ तक पहुँच जाती है और
कुछ है झुलस जाता है जो.....
(06.06.11)

1 comment:

  1. क्या पता ऐसा भी हो
    कि जिस दिए की आंच में
    जल रहे हो तुम, वही
    मुझ तक पहुँच जाती है और
    कुछ है झुलस जाता है जो.....वाह!

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