टूटी खिड़कियाँ कुछ दिनों में बदल दी जाएँगी..
लहू के दाग हमेशा न रहेंगे...
सड़क धो-पुंछ कर साफ़ हो जायेगी,
वैसे भी ये बारिशों के दिन हैं...
अभी कुछ दिन तक हवा में बारूद और मांस की बू रहेगी...
फिर समंदर की खुशनुमा बयार आएगी...
आपस में घालमेल हो चुके बदन के टुकड़ों का
सामूहिक चिताओं में हो चुका सेकुलर दाह-संस्कार
कुछ दिन नजर के सामने रहेगा...
कुछ दिन अस्पताल में घायलों के घावों से ..
टपकती मवाद की बूंदों में टीवी की खबरें लपलपायेंगी ...
आंसूं ब्रेकिंग न्यूज़ हैं...
कल किसी और के दिखाए जायंगे....
टीवी एंकरों की नकली सोज़ भरी आवाजें...
कल कोई नया मुद्दा उठाएंगी...
हमारे कर्णधारों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं.....
लोग नहीं मरेंगे को तो क्या उन्हें कोई देखेगा नहीं?
उनके चेहरे तो किसी न किसी बहाने टीवी पे आ ही जायेंगे...
और इसमें शर्मिंदा होने वाली क्या बात है....?
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