माना कि उसके जिक्र में अब वो कसक नहीं
लेकिन कशिश भी दिल से गयी आज तक नहीं
मेरी किसी क़िताब के पन्नों में छुपी है
कम आज भी हुई है उस गुल की महक नहीं
कहते हो तुम चमन में है बहार ही बहार
आयी मगर क्यूँ बादे-सबा मुझ तलक नहीं
चिलमन की ओर हर किसी निगाह की निगाह
कमबख्त! मेरे झुकते ही जाये सरक नहीं
वैसे तो अंजुमन में हैं शोखियाँ तमाम
इक सादा-हुस्न जैसी किसी में खनक नहीं
लेकिन कशिश भी दिल से गयी आज तक नहीं
मेरी किसी क़िताब के पन्नों में छुपी है
कम आज भी हुई है उस गुल की महक नहीं
कहते हो तुम चमन में है बहार ही बहार
आयी मगर क्यूँ बादे-सबा मुझ तलक नहीं
चिलमन की ओर हर किसी निगाह की निगाह
कमबख्त! मेरे झुकते ही जाये सरक नहीं
वैसे तो अंजुमन में हैं शोखियाँ तमाम
इक सादा-हुस्न जैसी किसी में खनक नहीं
loved the fragrance of the flower becoming a part of the book. a lot of people are like flowers..leave thier permanent fragrance in our lives..well written pushpendra
ReplyDeleteकहते हो तुम चमन में है बहार ही बहार
ReplyDeleteआयी मगर क्यूँ बादे-सबा मुझ तलक नहीं
......बहुत खूब !!!
wahhhh.....
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