Saturday, 10 December 2011

माना कि उसके जिक्र में अब वो कसक नहीं

माना कि उसके जिक्र में अब वो कसक नहीं 
लेकिन कशिश भी दिल से गयी आज तक नहीं

मेरी किसी क़िताब के पन्नों में छुपी है
कम आज भी हुई है उस गुल की महक नहीं

कहते हो तुम चमन में है बहार ही बहार
आयी मगर क्यूँ बादे-सबा मुझ तलक नहीं

चिलमन की ओर हर किसी निगाह की निगाह
कमबख्त! मेरे झुकते ही जाये सरक नहीं

वैसे तो अंजुमन में हैं शोखियाँ तमाम
इक सादा-हुस्न जैसी किसी में खनक नहीं

3 comments:

  1. loved the fragrance of the flower becoming a part of the book. a lot of people are like flowers..leave thier permanent fragrance in our lives..well written pushpendra

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  2. कहते हो तुम चमन में है बहार ही बहार
    आयी मगर क्यूँ बादे-सबा मुझ तलक नहीं
    ......बहुत खूब !!!

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