दिल में उमड़ रहा है, किसी नाम का धुआं
सुलगी तमाम रात, ऐसी शाम का धुआं .
मेरी तलाश आके यहाँ ख़त्म हो गयी
उठने दो ग़र उठे जो इस मुक़ाम का धुंआ .
इस उम्रे-बेक़रार को तनहा ही छोड़ दो
इसका नसीब ख़्वाबे-बेलगाम का धुआं
जो बन के अश्क़ दर्द को रस्ता ना दे सके
बेकार की ख़लिश है, ये किस काम का धुआं .
---------------------
बाम - छत
जो बन के अश्क़ दर्द को रस्ता ना दे सके
बेकार की ख़लिश है, ये किस काम का धुआं .
दंगों की आग, शहर की तहजीब खा गयी
है चार सूं दुआओं का, सलाम का धुंआ .
हिन्दू का घर था याकि मुसलमां का घर जला
देता नहीं पता, ये घर की बाम का धुआं .
बाम - छत
No comments:
Post a Comment