Tuesday, 27 December 2011

उन्मुक्त पवन का झोंका हूँ, बांधों न मुझे तुम बंधन में

उन्मुक्त  पवन  का  झोंका  हूँ,  बांधो   न  मुझे  तुम  बंधन  में


जब लगे हृदय  हो शुष्क चला, उर में  मरुथल सी अनल जले
जब  लगे  प्रेम  का भाव ढला,  अंतस  में   दुखिया  पीर  पले
जब  मीत  पुराना   ठुकराए,   मन    एकाकी    हो    घबराए
जब  आशाओं  के  दीप बुझें,   चहुँ   और  अन्धेरा  छा  जाए


उस    घडी   अचानक   आऊँगा,   मैं   तेरा  साथ  निभाऊंगा
कुछ    देर    तुम्हारे   होठों   पे,  बन  मृदुल-हँसी लहराऊंगा
दुःख के कंटक झर  जायेंगे, सुख-सुमन खिलेगा मन-वन में
तब  मुझको  उड़ जाना  होगा, मैं कब  ठहरा  एक आँगन में


उन्मुक्त  पवन  का  झोंका  हूँ,  बांधो   न  मुझे  तुम  बंधन  में










5 comments:

  1. बहुत खूबसूरत आशा का संचार करती प्रस्तुति।

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  2. बहुत सुन्दर भाव लिए हुए अच्छी प्रस्तुति

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  3. उस घडी अचानक आऊँगा, मैं तेरा साथ निभाऊंगा
    कुछ देर तुम्हारे होठों पे, बन मृदुल-हँसी लहराऊंगा ..

    बहुत ही सुन्दर ... आशा का गीत ... भाव मय रचना है ...

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  4. वंदना जी, संगीता जी, राजेश कुमारी जी और दिगंबर जी.. आप सभी का धन्यवाद.

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