एक शाम धुंधली सी,
चश्मे-नम सी सीली सी
चश्मे-नम सी सीली सी
सर्द-सर्द सीरत की,
उदास कुछ तबीयत की
आज घिर के आयी है,
अपने साथ लाई है
दर्दे-जां वही फिर से,
आसमां वही फिर से
डूबते से सूरज ने
सुर्ख रोशनाई से
आसमां के आँचल पे
रंगे-हिना उभारा था,
सारा आसमां जैसे
रच गया हो मेंहदी से
क्या हसीन मंज़र था,
क्या हसीं नज़ारा था !
और वही हिना अपने
हाथों में तुम रचाए हुए
उस से मिलने आयी थीं,
जिस के संग जीने की
जिस के संग मरने की
कसमें तुमने खायी थीं,
हाँ, उसने सुन लिया होगा
जो तुमने कह दिया होगा,
दर्द यूँ बिछड़ने का
नज़रों से बह गया होगा,
यूँ साथ छोड़ देने की
मजबूरियां रहीं होगीं,
अश्क़ों में ढल गयी होंगी
लाचारियाँ रहीं होगीं,
उन कांपते से हाथों में
बेजान उँगलियों ने फिर
कागज़ कई समेटे थे,
ये ख़त वही रहे होंगे
होठों से चूम कर तुमने
जो उसके पास भेजे थे,
कुछ देर उसके कांधे पे
तुम सर झुकाए बैठी थी
आँखों में इक दुआ ले कर,
तुमको भूल जाने की
दुनिया नयी बसाने की
कसमों की इल्तिज़ा ले कर,
लरजे हुए से पाओं से
आँचल में मुंह छिपा अपना
वो घर को लौटना तेरा,
मुश्किल से ज़ब्त अश्क़ों का
भींची हुई वो मुश्कों का
धीरे से खोलना उसका.....
वो शाम ढल गयी आख़िर
ये शामें ढल ही जाती हैं !
ये शामें ढल ही जाती हैं !
और हर तरफ अँधेरा था,
मैं दूर फासले पे था
उस शाम मैं पराया था
उस शाम मैं अकेला था,
तुम मेरे पास आ न सकी
तो मुझसे दूर क्या जाती !
मेरा नहीं ये अफ़साना,
फिर भी उदास रातों में
क्यूँ बदस्तूर जारी है
एक ख़्वाब का चले आना ?
इस शाम फिर वही सूरज
इस शाम फिर हिना छाई
इस शाम फिर वही रंगत,
इस शाम फिर अकेला हूँ
इस शाम फासले फिर से
इस शाम फिर वही खिलवत........
-----------
चश्मे-नम = भीगी आँख
हिना - मेंहदी
इल्तिज़ा = निवेदन
मुश्क = मुट्ठी
खिलवत - एकांत
उम्दा ख्याल।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteसंगीता जी, मनोज जी - आपका बहुत बहुत आभार सराहने के लिए..
ReplyDeleteयूँ शाम और अकेलापन ... जिंदगी पे बन आयगी ...
ReplyDeleteलाजवाब एहसास को समेटा है ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 22 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... क्या समझे ? नहीं समझे ? बुद्धू कहीं के ...!!
पुष्पेन्द्र जी,
ReplyDeleteहृदय के गुप्त खनिज को बड़ी कुशलता से कविता में पिरोया है. वाह जी वाह...
बेहतरीन ख्याल।
ReplyDeleteसादर
प्रकृति का सुन्दर चित्रण साथ ही भावों की सहज व्याख्या और विरह में व्याकुल मन का बेहतरीन ताल मेल .....सुन्दर से भी सुन्दर !!!
ReplyDeletebahut khoobsuratv ehsaas bichudne ke gamo ko samete hue.dil ko chhoo gai yeh rachna.aapke blog se jud rahi hoon.mere yahan bhi aaiye.
ReplyDeleteचलचित्र सा खाका खींच दिया दर्द की रुबाई दिल से निकली और खामोशी मे खो गयी।
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास..... उम्दा रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...
WWah!!! Bahut khoob sir....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
वाह !!! बहुत ही खूबसूरत एहसास समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी सराहना आगे भी लिखने के लिए प्रोत्साहित करती रहेगी.
ReplyDeleteसंगीता जी... आपका आभार.!
ReplyDeletewahhh...
ReplyDeletesundar prembhav sajoye kuhbsurat rachana hai...
thanks Reena ji.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeletebahut sundar bhaav shabdon ne ek chitra sa kheench diya.
ReplyDeleteये शामें ढल ही जाती हैं....:))
ReplyDeletedil kuch bhaari ho aaya...sooraj seh na saka doob gaya...bahut achcha likha
ReplyDeleteसदा जी, राजेश जी, हरकीरत जी एवं दिलीप जी... आप सब का शुक्रिया !
ReplyDelete