Thursday 28 July 2011

आज भी ये रास्ता है



                   आज भी ये रास्ता है, और मैं हूँ

कल भी गुजरे थे मेरे मांदा कदम इस राह से
कल भी मैंने  ठोकरें दो-चार इस के नाम की
आज भी  बिखरे  हुए पत्तों  ने  पहचाना मुझे
चरचराती  ख़ामोशी मैंने सुनी फिर शाम की

आज भी डूबे हो जाने किन ख़यालों में, कहो
मुझसे ये पूछा किसी पत्ते ने फिर गिरते हुए
रास्ते  भर, रास्ते  से  आज  फिर  बातें हुई
रास्ता कहता रहा  और मैं फ़कत सुनते हुए

                  आज भी ये रास्ता है, और मैं हूँ
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मांदा - थके  
(28.07.11)

1 comment:

  1. Wahi safar zindagi ka , wahi rasta , wahi hum aur wahi akelapan . Khoobsoorat kavita .

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