Tuesday 20 December 2011

इस शाम फासले फिर से


एक शाम धुंधली सी,
    चश्मे-नम सी सीली सी

सर्द-सर्द सीरत की,
    उदास कुछ तबीयत की 
आज घिर के आयी है,
    अपने साथ लाई है
दर्दे-जां वही फिर से,
    आसमां वही फिर से

डूबते से सूरज ने 
  सुर्ख रोशनाई से   
    आसमां के आँचल पे    
      रंगे-हिना उभारा था,  
सारा आसमां जैसे
  रच गया हो मेंहदी से
    क्या हसीन मंज़र था,
      क्या हसीं नज़ारा था !

और वही हिना अपने 
  हाथों में तुम रचाए हुए 
    उस से मिलने आयी थीं,
जिस के संग जीने की 
  जिस के संग मरने की
    कसमें तुमने खायी थीं,

हाँ, उसने सुन लिया होगा 
    जो तुमने कह दिया होगा,
दर्द यूँ बिछड़ने का
    नज़रों से बह गया होगा,
यूँ साथ छोड़ देने की 
    मजबूरियां रहीं होगीं,
अश्क़ों  में ढल गयी होंगी 
    लाचारियाँ रहीं होगीं,

उन कांपते से हाथों में
  बेजान उँगलियों ने फिर
    कागज़ कई समेटे थे,
ये ख़त वही रहे होंगे
  होठों से चूम कर तुमने
    जो उसके पास भेजे थे,

कुछ देर उसके कांधे पे
  तुम सर झुकाए बैठी थी  
    आँखों में इक दुआ ले कर,
तुमको भूल जाने की
  दुनिया नयी बसाने की
    कसमों की इल्तिज़ा ले कर,

लरजे हुए से पाओं से
  आँचल में मुंह छिपा अपना
    वो घर को लौटना तेरा,
मुश्किल से ज़ब्त अश्क़ों का
  भींची हुई वो मुश्कों का
    धीरे से खोलना उसका.....



वो शाम ढल गयी आख़िर 
  ये शामें ढल ही जाती हैं !
    और हर तरफ अँधेरा था, 
मैं दूर फासले पे था 
  उस शाम मैं पराया था 
    उस शाम मैं अकेला था,

तुम मेरे पास आ न सकी 
  तो मुझसे दूर क्या जाती !
    मेरा नहीं ये अफ़साना,
फिर भी उदास रातों में 
  क्यूँ बदस्तूर जारी है  
    एक ख़्वाब का चले आना ?

इस शाम फिर वही सूरज 
  इस शाम फिर हिना छाई 
    इस शाम फिर वही रंगत,
इस शाम फिर अकेला हूँ
  इस शाम फासले फिर से 
    इस शाम फिर वही खिलवत........ 


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चश्मे-नम = भीगी आँख
हिना - मेंहदी 
इल्तिज़ा = निवेदन
मुश्क = मुट्ठी 
खिलवत - एकांत 

22 comments:

  1. संगीता जी, मनोज जी - आपका बहुत बहुत आभार सराहने के लिए..

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  2. यूँ शाम और अकेलापन ... जिंदगी पे बन आयगी ...
    लाजवाब एहसास को समेटा है ...

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  3. पुष्पेन्द्र जी,
    हृदय के गुप्त खनिज को बड़ी कुशलता से कविता में पिरोया है. वाह जी वाह...

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  4. बेहतरीन ख्याल।

    सादर

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  5. प्रकृति का सुन्दर चित्रण साथ ही भावों की सहज व्याख्या और विरह में व्याकुल मन का बेहतरीन ताल मेल .....सुन्दर से भी सुन्दर !!!

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  6. bahut khoobsuratv ehsaas bichudne ke gamo ko samete hue.dil ko chhoo gai yeh rachna.aapke blog se jud rahi hoon.mere yahan bhi aaiye.

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  7. चलचित्र सा खाका खींच दिया दर्द की रुबाई दिल से निकली और खामोशी मे खो गयी।

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  8. खूबसूरत एहसास..... उम्दा रचना...
    सादर बधाई...

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  9. WWah!!! Bahut khoob sir....

    www.poeticprakash.com

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  10. वाह !!! बहुत ही खूबसूरत एहसास समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  11. आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी सराहना आगे भी लिखने के लिए प्रोत्साहित करती रहेगी.

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  12. wahhh...
    sundar prembhav sajoye kuhbsurat rachana hai...

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  13. वाह ...बहुत ही बढि़या ।

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  14. bahut sundar bhaav shabdon ne ek chitra sa kheench diya.

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  15. ये शामें ढल ही जाती हैं....:))

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  16. dil kuch bhaari ho aaya...sooraj seh na saka doob gaya...bahut achcha likha

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  17. सदा जी, राजेश जी, हरकीरत जी एवं दिलीप जी... आप सब का शुक्रिया !

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