Wednesday, 11 May 2011

नहीं तो अब तलक दिल में समंदर बन गया होता


 हंसी बन के जो उतरा है फ़साना आप के लब पे
 ये मेरी आँख से ढलता तो आंसू बन गया होता

 चुभेंगें इस  क़दर  ये  गुल  मुझे  मालूम  जो होता
 मैं गुलशन में तो आया था ही कांटें चुन गया होता

 कोई  उम्मीद  जो  होती   के  मुझ  पे  ऐसी  गुजरेगी
 जिगर का मोम सब पिघला के पत्थर बन गया होता

 चलो अच्छा हुआ के रो लिया करता था मैं अक्सर
 नहीं तो अब तलक दिल में समंदर बन गया होता

(08.05.1992)

3 comments:

  1. Beautiful. Is ghazal ko suron mein pirone ka man kar raha hai!

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  2. चलो अच्छा हुआ के रो लिया करता था मैं अक्सर
    नहीं तो अब तलक दिल में समंदर बन गया होता

    bahut sundar!!

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