हंसी बन के जो उतरा है फ़साना आप के लब पे
ये मेरी आँख से ढलता तो आंसू बन गया होता
चुभेंगें इस क़दर ये गुल मुझे मालूम जो होता
मैं गुलशन में तो आया था ही कांटें चुन गया होता
कोई उम्मीद जो होती के मुझ पे ऐसी गुजरेगी
जिगर का मोम सब पिघला के पत्थर बन गया होता
चलो अच्छा हुआ के रो लिया करता था मैं अक्सर
नहीं तो अब तलक दिल में समंदर बन गया होता
(08.05.1992)
Beautiful. Is ghazal ko suron mein pirone ka man kar raha hai!
ReplyDeleteAtanu... tum se behtar kaun hoga is kaam ke liye...!!!
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ के रो लिया करता था मैं अक्सर
ReplyDeleteनहीं तो अब तलक दिल में समंदर बन गया होता
bahut sundar!!