हर शख्श बेगाना है, हर दिल वीराना है
तुम मानो ना मानो, बेदर्द जमाना है
इस दुनिया से अक्सर कांटे ही पाये हैं
उम्मीद में फूलों की दामन फैलाना है
है दर्द नया जिसमें पर बोल पुराने हैं
मैं एक मुसाफिर हूँ तुम रोको मत मुझको
इस दर से गुजर के फिर नहीं लौट के आना है
(03.06.90)
तुम मानो ना मानो, बेदर्द जमाना है
हर सुबह निकलना है होठों पे हंसी लेकर
हर शाम ढले घर पर ग़म ले कर आना हैइस दुनिया से अक्सर कांटे ही पाये हैं
उम्मीद में फूलों की दामन फैलाना है
है दर्द नया जिसमें पर बोल पुराने हैं
वो गीत मुझे तुमको इक बार सुनाना है
मैं एक मुसाफिर हूँ तुम रोको मत मुझको
इस दर से गुजर के फिर नहीं लौट के आना है
(03.06.90)
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