मूक दर्शक
कर चुके समर्पण
शाश्वत समयहीनता के भार तले ...
सजे खड़े हैं बिखरी लताओं से
मकड़ियों ने बुने हैं उलझे हुए आकार - सदियों की धूल पर
धकेले जा चुके अस्तित्वविहीनता में -
सारे धार्मिक उन्माद से परे
शायद दे सकें शांति किसी भूले-भटके को
क्योंकि धब्बे नहीं हैं उन पर - भक्तों के खून के
(Shantanu Raychoudhuri lives in Delhi. He is a great human being, personal friend and poet par excellence)
(20.07.2000)
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