| मुझको आदत है दिल दुखाने की |
| दोस्त मेरे, गिला नहीं रखना |
| मैं भले ही करीब ना आऊँ |
| फिर भी तुम फ़ासला नहीं रखना |
| वक़्त है तंग तुम तूफानों के |
| पास ये काफ़िला नहीं रखना |
| ख़ुशी-औ-ग़म की गिनतियों में कभी |
| क्या मिला, ना मिला, नहीं रखना |
| दोस्त रखना क़रीब या दुश्मन |
| पास कोई दिलजला नहीं रखना |
| चाहे ख़ुशियाँ हों या के ग़म रखना |
| दिल में लेकिन ख़ला नहीं रखना |
बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की, दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है, यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी, मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है - पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Friday, 27 May 2011
दिल में लेकिन ख़ला नहीं रखना
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बेहतरीन अभिव्यक्ति !
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