Thursday, 26 May 2011

तमन्ना लौट कर जाने की



लौट  आया  हूँ  ख़ुदा  तेरे  जहाँ  से  मैं 
तमन्ना  लौट  कर  जाने  की  मुझको एक  नहीं
लाजमी   है  के  अचरज  तुझे  हुआ  होगा
मगर  हैरान  इस  हद  होके  मुझको देख  नहीं


ये  सच  है कि  देखने  में  है  हसीं  बहुत
जहाँ  जो  तूने अता  है  किया  हमारी  नजर
हर  एक  ज़र्रा  बेशक  है  दिलकशी  में  गज़ब
हर  आलम  में नजर आता  है ख़ुदाई असर

हंसीं  वादियाँ  जिनमें  घटाओं  के  मंजर
जिन्हें  निहार  के  तबीयत  को  नशा  आ  जाये
और बारिश में मिट्टी की ले महक सौंधी
बहे  बयार  तो  ज़न्नत का  मजा  आ  जाये

मगर  ये  क्या  किया,  तूने  बना  दिया  इन्सां
अपने  हाथों  से  क्यूँ  बहार  में खिज़ां भेजी
हरेक  शै  उदास  हो  गयी  है  जब  से
स्याह  शख्शियत  इन्सां  की  यहाँ  भेजी

स्याह करतूतों का आलम ये है के देते हैं
मात  शैतान  को  मेरे  ख़ुदा, तेरे  बन्दे
और तो और, अब इक साथ रह नहीं सकते
तेरी  दुनिया  में  मेरे  ख़ुदा, तेरे  बन्दे

जो  जमीन  तूने हसरतों  से  दी  उनको
उन्होंने  बाँट  कर  रख  दी  वहां, वही  धरती
बांटते-बांटते  इस  हद  हुआ  है  बंटवारा
बंटी  है  रोशनी, जुदा -जुदा  हवा  बहती

ख़ुद भी  बँट गए  मज़हब  के नाम पर  सारे
ये  हिन्दू, ये  मुसलमान, ये ईसाई है
राम -रहीम  में , ईसा में   और  मूसा  में
गज़ब  हुआ ख़ुदा, बँटी  तेरी  ख़ुदाई  है

हकीक़त ये  कि  बच्चे  भी  दो  तरह  के  हैं
एक  तो  वे  जिन्हें  नसीब  हैं  आराम  सभी
सुबह  हंसती  हुई आती  है जिनकी  दुनिया  में
उदास  उनके  लिए  होती  नहीं  है शाम कभी

जिसकी किस्मत  में लिखा  ही  नहीं जवां  होना
एक  बचपन  वहां  है  और,  गंदी गलियों में
आज, बस आज, अगर पेट  उसका  भर  जाये
उसको मिल जाएगी ज़न्नत, गलीज गलियों में

वो बचपन जवान होगा जब बुढ़ापे की
झुर्रियों में सन जायेगा उसका चेहरा
भटकता हुआ वीरानियों में, ढोए हुए
बारे-जीस्त, जब थक जायेगा उसका चेहरा

आज इन्सान में इंसानियत नहीं बाकी
शख्श हर एक, एक-दूसरे का दुश्मन है
हर तरफ खून के दरिये, क़त्ल की साजिश
दिलों में आ गयी न जाने कैसी भटकन है

रगें इन्सान की अब खून नहीं ले जाती
उनमें भर गया है वहशतों का लावा
चैन दो पल नहीं, क़रार नहीं मुद्दत से
दिमागों पर हुआ है दहशतों का दावा

आज इन्सां नहीं पीता तेरा दिया पानी
है पसंद उसको पीना खून इन्सां का
लाश देख, वो रोता नहीं है, हँसता है
इस हद पे आ गया जूनून इन्सां का

ऐसी बस्ती को बसाने से तो बेहतर होता
जहां में हर तरफ सुनसान वीराने होते
क़त्ल हो गए इन्सान ही के हाथों जो
बदन ना उनके हमें रोज़ जलाने होते

तमन्ना लौट कर जाने की मुझको एक नहीं…...


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