यहाँ हरियाली बहुत है तो जंगल काट डालो फिर
मिटा के कोह सारा बियाबानों का मज़ा लो फिर
अभी बहती हुई नदियाँ नहीं अच्छी तुम्हें लगतीं ?
बाँध कर बाँध पानी ही न क्यों इनका सुखा लो फिर
सुना है, आ चुके हो तंग तुम सैलानियों से अब !
न कुछ दिन में कोई आएगा जितना भी बुला लो फिर
न होगी झील ना कोई कतारें देवदारों की
अभी कुछ रोज़ कश्ती तुम जो चाहो तो चला लो फिर
कोह - पहाड़
(19.05.11)
बहुत खूब .....
ReplyDelete